वर्षों से मन में आस थी
एक दोस्त की तलाश थी,
थक गयी थी ज़िन्दगी
यूं ढूंढते ही ढूंढते,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
सैकड़ों सरिता मिलीं
कुछ रेत कि कुछ नीर की,
पायी ना कोई धार निर्मल
सो ज़िन्दगी अधीर थी,
क्या कहूँ कैसे कहूँ
ये किस तरह की प्यास थी,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
चलता रह फिर ये सफ़र
पड़ाव भी जाते रहे,
झूठी तसल्ली देकर खुद को
खुद ही समझाते रहे,
जानती थी ज़िन्दगी
ये मात्र एक परिहास थी,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
पर एक दिन यूं ही अचानक !
मेहरबाँ वो रब हुआ,
मुझको नही मालुम अरे !
कैसे हुआ ये कब हुआ !
उम्मीद जिसकी थी नही
लो वो तो मेरे पास थी,
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
सुमन सा कोमल सु-मन मैं
देखता ही रह गया,
स्नेह की आँधी चली और
दूर तक फिर बह गया,
सोचा अकेला हो गया
फिर से ज़माने में मगर,
आखें खुलीं तो पाया मैंने
वह तो मेरे पास थी
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
Saturday, October 27, 2007
तलाश
Posted by भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav at 4:14 AM 6 comments
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Wednesday, October 17, 2007
जलाना अलाव.........
जलाना अलाव
दूर से आऊंगा देखते मैं वो
जगमगाती रोशनी
तेरी आंखों मे तड़पती मिलन की खूशबू
को महकाऊँगा हर कण-कण मे
झलकती होगी मेरे इंतज़ार मे कटी हुई जिन्दगी,बेरंग बेनूर
आसमान की तरह बेतरतीब बिखरी
मन की इच्छाओं को
समेटकर पानी मे बहाना
या फिर हवाओं मे उडाना
तेरेंगे मछलियों से
या फड़फड़येंगे पंछियों से
जैसे भी पहुंचे,जहाँ भी
पहुंचे यहाँ वहाँ कहीं भी...
तेरे उन ख्वाहीशों मे हर एक
शब्दों के अन्दर अपनी परछाइयों
को हासिल कर,प्यार के साए
मे लिपटा आऊंगा, मेरे मितवा
बस हर रात, घर के आँगन मे
जलाना अलाव.........
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by divya at 11:42 AM 7 comments
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Tuesday, September 18, 2007
मोहब्बत में ऐसा क्यों होता है
वो मुझसे जुदा हो कर भी जुदा नही होता है
हर एक पल बस तलाश करती हैं उसको मेरी नज़रे
हर एक नज़ारे में बस उसका ही गुमान होता है
देखा करते हैं हम ख्वाब उनके ही दिन रात
सिर्फ़ वो ही वो मेरे दिल के क़रीब होता है
ढलकता है जब भी रात का आँचल चाँद के मुख से
हर बीतते पल में उनसे मिलने का सबब होता है
समा जाए धड़कनों में अब धड़कने कुछ ऐसे
हर पल उनकी सांसो में गुम होने का नशा होता है
अक्सर उनको महसूस किया है मैने अपने आस पास
क्या यह सच है या मेरे वजूद पर उनका यूँ ही असर होता है
सच कर दे इस ख़्वाब को अपनी बाहों में भर के तू सनम
कि आज की रात का सफ़र भी अब यूँ ही ख़्वाबों में खत्म होता है
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 9:33 PM 12 comments
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Monday, September 17, 2007
मोहब्बत-ए-इज़हार
भरी महफ़िल जो तुमने, मोहब्बत-ए-इज़हार कर दिया,
लो हमने भी आज अपने दिल को तुम्हारे नाम कर दिया,
चाहत मे मेरी हर पल, तुम धड़कन बन समाई हो,
तुम्हारे इकरार ने मोहब्बत को अपनी जवान कर दिया.
हर सुबह हर शाम मेरी बस तुमसे है सनम,
रातों को भी हमने अपनी तुम्हारे नाम कर दिया.
आज बाहों मे लेने की तुमको, फिर तमन्ना जागी है,
तस्वीर तुम्हारी ने लिपट सीने से, यह ज़ाहिर कर दिया.
कहनी और कई बातें तुमसे, पर इस महफ़िल मे नही,
वरना कहोगी की सर-ए-आम हमने तुम्हे बदनाम कर दिया.... !!!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Vicky at 11:29 PM 8 comments
Labels: विक्की । Vicky
Saturday, September 15, 2007
Every Day You Play
Every Day You Play
Every day you play with the light of the universe.
Subtle visitor, you arrive in the flower and the water.
You are more than this white head that I hold tightly
as a cluster of fruit, every day, between my hands.
You are like nobody since I love you.
Let me spread you out among yellow garlands.
Who writes your name in letters of smoke among the stars of the south?
Oh let me remember you as you were before you existed.
Suddenly the wind howls and bangs at my shut window.
The sky is a net crammed with shadowy fish.
Here all the winds let go sooner or later, all of them.
The rain takes off her clothes
The birds go by, feeling.
The wind. The wind.
I can contend only against the power of men.
The storm whirls dark leaves
and turns loose all the boats that were moored last night to the sky.
You are here. Oh, you do not run away.
You will answer me to the last cry.
Cling to me as though you were frightened.
Even so, at one time a strange shadow ran through your eyes.
Now, now too, little one, you bring me honeysuckle,
and even your breasts smell of it.
While the sad wind goes slaughtering butterflies
I love you, and my happiness bites the plum of your mouth.
How you must have suffered getting accustomed to me,
my savage, solitary soul, my name that sends them all running.
So many times we have seen the morning star burn, kissing our eyes,
and over our heads the grey light unwind in turning fans.
My words rained over you, stroking you.
A long time I have loved the sunned mother-of-pearl of your body.
I go so far as to think that you own the universe.
I will bring you happy flowers from the mountains, bluebells,
dark hazels, and rustic baskets of kisses.
I want to do with you what spring does with the cherry trees.
written by Pablo Neruda
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Posted by Anonymous at 2:26 AM 3 comments
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Friday, September 14, 2007
हम तुझसे और सनम क्या चाहते हैं....
बस तेरे इश्क़ की इन्तहा माँगते हैं
जब भी तू गुम हो तन्हा किन्ही ख्यालों में
उन ख़यालो में अपनी ही बात चाहते हैं
जब भी फैला हुआ हो रात का आँचल
डूबते सितारो तक तेरे संग जागना चाहते हैं
दिल में मचल रहे हैं तेरे लिए कई अरमान
तेरे आगोश में उनको सच होते देखना चाहते हैं
कब तक यूँ ही मुझे तडपाता रहेगा तू यूं ही
आज हम तेरे वजूद में गुम होना चाहते हैं !!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 10:58 PM 6 comments
Labels: रंजना । Ranjana
Friday, September 7, 2007
शब भर
चलो आज आखिरी यह इंतजाम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
यह इश्क सो न जाए, थपकी न देना अब तुम,
मैं बात यूँ जगाऊँ , करवट के होश हों गुम ,
अबकी जो शब सजे तो लब भर के चली आना-
बादल के माथे का वो आफताबी सारा कुमकुम।
सुनो!तेरे लबों के सूरज अपने तमाम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
शब खत्म न हो अपने मिलन की यह निगोड़ी,
दो रात को जो जोड़े , उस दिन की कर लूँ चोरी,
चाहत की कैंची लेकर दिन टुकड़े-टुकड़े कर दूँ-
हर शब में डाल दूँ मैं , हर कतरन थोड़ी-थोड़ी।
आज बाहों में एक-दूसरे का ऎहतराम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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Posted by विश्व दीपक at 2:13 PM 3 comments
Labels: तन्हा । Tanha
Friday, August 17, 2007
एक गज़ल
हमें क्या पड़ी थी , नींद की जो आरजू करते,
हमारे ख्वाब ,खुली नज़रों से थें गुफ्तगू करते ।
मसीहा इश्क का बेमौत शायद मर चुका होता,
जो गज़लों से मोहब्बत करना ना शुरू करते।
कोई कह दे उन्हें, वो शब भर बेसब्र ना रहें,
जग लेते हैं चकवा-चकई भी जुस्तजू करते।
निगाहे-नूर जिरह कर ले भी तो जान आ जाए,
जाने क्या मिले उनको , हमें बेआबरू करते ।
गर तबियत से मिले दिल तो रश्क भी करूँ,
आह! ना बने बीमार दिल को य़ूँ उदू करते।
'तन्हा' , नामुरादे-इश्क ऎसी बला है जान ले,
बस पल लगे नब्जों के पानी को लहू करते ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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Posted by विश्व दीपक at 9:04 AM 6 comments
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Thursday, August 2, 2007
मैं और तुम
यह जो नया एहसास सा दिल पर छाया है
तेरे प्यार की ही तो माया है
मैंने ना जाने ख़ुद को कब से..
इन प्रश्नो में उलझा पाया है
तुमने कहाँ जवाबो को छिपाया है
तुमने क्यूं मेरे सवालो को चुराया है
ख़ुद को क्यूं देखा है वहाँ
जहाँ तुम को नही पाया है
और तुम क्यू हो वहाँ ……..?
जहाँ मेरा साया भी नज़र नही आया है
तब मेरे दिल ने हँस कर ……..
बस यही संगीत सुनाया है
प्यार की मीठी बातों का ……
मुझको यह राज़ बताया है
एक प्यार का तार जुड़ा है दोनो में,
जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम हो…..
जहाँ तुम हो वहाँ मैं हूँ
यही विश्वास दिलाने को
दोनो की आँखो में एक खुमार सा छाया है
दिल की निकटता ही बस एक सच है
बाक़ी हर दूरी एक साया है
यह जो नया एहसास सा दिल पर छाया है
यह तेरे ही प्यार की तो माया है !!
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Posted by रंजू भाटिया at 8:33 PM 8 comments
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Friday, July 20, 2007
Love and Friendship
I have heard people preaching "be the best friend of the person you love, or let him/her be the best friend of yours. You should be able to share everything with the person you love, you should be able to support each other in difficult situations, should be able to tell each other each and everything, and most importantly should not keep any secrets from each other".
Well, of all things I have realized till today, you cannot be the best friend of the person you love, or rather, you can not love your best friend. Sure, lovers can be friends to certain extent, but they can never even be good friends, leave aside being the best friend in that matter. And that is the very reason why the word love is used.
Now, for people who are fuming or deciding to mark this post as a total bullshit, this is the reason why I decided to write on this. Here is my logic behind a statement that I know perhaps 9 out of 10 people will oppose. I don't claim this will change your views, but will surely give you something to think about, something to reconsider the so called fact that "lovers are the best of friends".
Well, a best friend, or rather a friend is one to whom you can confide each of your secrets in, you can talk about all that you have done or have been a witness too, be it good or bad, fair or foul. In a friend, you do not fear being judged. In a friend, you need not think about what you say, because you know that whatever happens, a friendship, or rather a true one, can always be mended. Because you know, there exists no words or deeds in this world that can permanently ruin a friendship. All a friend can give you is total freedom, total independence to express all you want to say, all you want to do. Most importantly, you can talk about your crush, you can talk about the hot gals or dashing guys that you probably came across the last time you went shopping in a mall.
For Lovers, in reality, stuff like "do not keep secrets from each other" is only another saying, perhaps an unpronounced commandment of the bible, but is never ever practiced in real life. No one on earth could swear that he or she is totally clean to his/her lover. As a matter of fact, secrecy is the essence of a committed relationship. It is the suspense, the excitement of exploring the other person, that keeps a loving relation alive. A lover is one you could confide your pains in, a lover is one, from whom you can expect support and cooperation in all stages, all aspects of life. A lover is one who helps you through difficult situations. But then, a Lover is not the person you can say absolutely anything to. Can you expect saying your girlfriend or boyfriend that you really liked a gal or a guy you came across yesterday, that you thought she was very beautiful or he looked like Brad Pitt! Perhaps, nothing much would happen, but most of the people would not even dare to! Again, you would have to think twice before confiding your secrets in your lover, because there you have the fear of being judged, there you fear that he/she might leave you, after failing to accept the "not so bright" sides of yours.
Thus, you can only try to be a friend of the person you love, but I do not think its possible to develop a similar relation you have with your other friends. Also, its very difficult to fall in love with a very good friend of yours. For the darker sides of a friend might not bother you as long as you are just friends, but might be of concern when you try to take your relation to a next level, the level called Love.
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Posted by A Silent Lover at 12:23 PM 10 comments
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Thursday, July 19, 2007
एक अजनबी
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा,
क्यूँ कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा
किससे मिलने को बेचैन है चाँदनी,
क्यूँ मदहोश है दिल की ये रागिनी,
बनके बादल वफ़ा का बरसने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
गुम हूँ मै गुमशुदा की तलाश में
खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में
ये कौन सांस बनके दिल में महकने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
हर तरफ़ फ़िजाओं के हैं पहरे मगर,
दम निकलने न पायें जरा देखो इधर,
जिसकी आहट पर चाँद भी सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है
चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है
बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
सुनीता(शानू)
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Posted by सुनीता शानू at 12:53 PM 11 comments
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Saturday, July 14, 2007
एक चेहरा
एक चेहरा
जो पुराने सारे
चेहरे भुला दे
एक चेहरा
जो रातों की
निंदे उडादे
एक चेहरा
जिसे देखेने के बाद
किसी और को देखेने की
चाहत ना रहे
निगाहों की राहों से
दिल में उतरकर
वो चेहरा
मुझको चुरा ले गया है।
यादों में
सोचों में
खुदको बसाकर
तड़पने कि मुझको
सज़ा दे गया है।
एक चेहरा...
- तुषार जोशी, नागपूर
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Posted by Tushar Joshi at 10:46 PM 4 comments
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Friday, July 13, 2007
प्यार की इबारत
कभी दिल के सफ़र में, मैं तुझसे दूर ना थी
पर तुझ तक सफ़र तय करने में वक़्त लगा
समझा नही मैने तेरी किसी बात को झूठा वादा
मैने अपने ख्वाबो का दरवाज़ा तेरे लिए खुला रखा
निशान बने रहे तेरी राहगुजर से मुझ तक आने के लिए
तेरे हर ख़्याल में हर बात में मैने ख़ुद को ज़िंदा रखा
बदल ना जाए कही तेरे नाम की लकीरे मेरे हाथों से
तेरा ही नाम अपनी ज़िंदगी की किताब में बार बार लिखा
कही फिर से ना बदल ले तू अपने प्यार की इबारत कभी भी
अपने प्यार से तेरी दुनिया तेरे जहाँ को मैने रोशन रखा !!
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Posted by रंजू भाटिया at 12:33 AM 5 comments
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Thursday, July 12, 2007
दिवाना कर दिया
उलझन में पड़ गया हूँ मैं दिल का क्या करूँ
छूकर किसीने दिल को दिवाना कर दिया
पुनम की चाँदनी से वो मुस्कुरा दिये
आबाद जिंदगी का विराना कर दिया
फुलों की सादगी थी मासूम हर अदा
बोले तो होश-ए-जाँ से बेगाना कर दिया
दुनियाँ बनाने वाले फरियाद है मेरी
क्यों झील सी आँखों का मैखाना कर दिया
निंदे मेरी उडादी लेकर गये करार
दर्दे-जिग़र का उसपे नज़राना कर दिया
-तुषार जोशी, नागपुर
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Tushar Joshi at 9:12 PM 6 comments
Labels: तुषार | Tushar
तुम, तुम और तुम
ख्वाबों में तुम, ख्यालों में तुम!
तुम, तुम और तुम
जीवन में तुम, जीवन के पार तुम!
तुम, तुम और तुम
हर लम्हा तुम, हर पल तुम!
तुम, तुम और तुम
सोचता तुम्हें, विचारता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
सोता तुम्हें, जागता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
उठता तुम्हें, बैठता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
खुली आंखों में तुम, बंद आंखों मे तुम!
तुम, तुम और तुम
सिमट सी गई है ज़िंदगी मेरी तुममें,
हां! तुममें ही!!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
Posted by Sanjeet Tripathi at 3:00 AM 7 comments
Labels: संजीत | Sanjeet
Friday, July 6, 2007
यह कौन...
यह कौन प्यार का गीत मुझे सुनता है
उस माथे को चूमा हमने यूँ होले से
जिसका चेहरा मुझे चाँद सा नज़र आता है
खिल गया है पलकों पर फिर ख्वाब कोई
यह कौन है जो सोई नींद से मुझे जगाता है
कानों में गूँजता है लफ्ज़ एक प्यार का
यह कौन मुझे सितारों की चुनरी उड़ाता है
यूँ लहका -महका सा आज दिल मेरा
जैसे कोई गुल भंवरे को देख के शरमाता है
चुरा ले आज मुझे दुनिया की नज़रो से सनम
जैसे ईद का चाँद नज़रो में समा के मुस्कराता है
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Posted by रंजू भाटिया at 8:37 PM 3 comments
Labels: रंजना । Ranjana
Friday, June 29, 2007
तुम
इश्क का घट आज,मैं नजरों से उड़ेलता हूँ।
तेरे लब पर मैं,सुनो, नूर-ए आब बेलता हूँ।
तुमने बेझिझक हाल-ए-दिल कह दिया लेकिन,
मेरे दिल का हाल सुनने में यह हया कैसी,
जा रही हो रूठ कर, मगर जाओगी कहाँ,
हैं मेरी अर्दली हवाएँ और रास्ते मेरे हितैषी।
लट उड़ाके शब सजाओ होश के वास्ते अब,
बेहोश इस रात में पलकॊं पे तेरे खेलता हूँ।
मैंने कब आँसू बिखेरे तेरे सुर्ख गालों पर और
ख्वाब कब रूख्सत किए तेरी सोख नींदॊं से,
डूबकर खुद में हीं देखो, सच बयां हो जाएगा,
छोड़कर सारी खुदाई, है तुझे चुना चुनिंदों से।
रात छोटी-सी लगे तो आँख पल को मूँद लो,
खोलना जब मैं कहूँ, तब तक दिन ढकेलता हूँ।
मेरी मूक आरजू को बोल तूने हीं दिये हैं,
और मेरी जुस्तजू को मूर्त्त तूने है किया,
मेरी जिंदगी के मंजिलों की तुम हीं हो रहनुमा,
सजदे कर रहा है दिल, कह रहा है शुक्रिया।
नींद को तकिये तले जिस्म के संग डाल दो,
रूह सिमटे रूह में, सो रूह अपनी ठेलता हूँ।
इश्क का घट आज,मैं नज़रों से उड़ेलता हूँ।
तेरे लब पर मैं, सुनो, नूर-ए-आब बेलता हूँ।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by विश्व दीपक at 2:02 AM 10 comments
Labels: तन्हा । Tanha
Tuesday, June 26, 2007
तेरा अहसास
तेरा अहसास कुछ इस कदर मुझ में समाया है...
हर पल हर समय बस तू ही तू नज़र आया है...
सुबह की पहली किरण और अंगड़ाई लेती
अपनी बाहो के घेरे में...
तुझे ख़ुद को चुमता पाया है...
कैसे सांवरू अपने बाल,
कैसे करूँ आज ख़ुद को तैयार
मेरा कौन सा रूप तुम्हे लुभाया है...
अपनी कज़रे की धार से, चूड़ियों की छनक तक...
बिंदी की चमक से, पायल की झनक तक...
बस तेरा ही अक्स मुझे नज़र आया है...
तुझसे प्यार करते हुए...
अपनी आँखे बंद रखूं या खुली...
देखने के लिए शीशे में...
ख़ुद को तेरे साथ पाया है...
मेरे हर ख़याल में शामिल है तू...
हर बात, हर पल मैने अपने वजूद में...
बस तेरी चाहत को ही पाया है...
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 4:10 AM 4 comments
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Thursday, June 21, 2007
प्रेम - मेरी परिभाषायें
1. प्रेम एक ऐसा उडन खटोला है जिस पर बैठ कर आन्नद तो सब लेना चाहते हैं परन्तु जिसे पल भर के लिये उठा कर चलना सबको दूभर लगता है।
2. प्रेम लेने (मांगने ) का नाम नहीं देने का नाम है... साथ ही यह शर्त है कि जो दिया उसका जिक्र कभी न हो।
3. प्रेम अनुकूल परिस्थियों में नही परन्तु प्रतिकूल परिस्थियों में पहचाना जा सकता है।
4. प्रेम के पौधे को परवान चढने की लिये... लग्न, विश्वास, क्षमा व निस्वार्थ रूपी हवा पानी और खाद की आवश्यकता होती है।
5.प्यार हमारे भविष्य निहित कामनाओं के स्वार्थ हेतु उगायी हुई वह फ़सल है... जिसे हम समय पर काट पायेंगे या नही.... स्वयं नही जानते।
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Mohinder56 at 2:19 AM 2 comments
Labels: मोहिन्दर । Mohinder
प्यार क्या है!
संजीतजी,
आपकी कविता ने मुझे कई विचार दिए, जिनमें से कुछ यहाँ पोस्ट कर रही हूँ, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!!!
(1)
प्यार क्या है, एक राही की मंज़िल.......
एक बंज़र जमी पर, अमृत की प्यास......
पारस पत्थर को ढुँढ़नें की खोज.......
ना पूरा होने वाला एक सुंदर सपना.....
जैसे की बड़ा मुश्किल हो कोई मिलना....
खो के फिर ना पाया हो कहीं पाया .......
मिल के भी,जो ना हुआ हो अपना........
(2)
प्यार है इक एहसास...
दिल की धड़कनी को छूता राग...
या है पागल वसंती हवा कोई...
या है दिल में झिलमिल करती आशा कोई...
या प्यार है एक सुविधा से जीने की ललक...
जो देती है थके तन और मन को एक मुक्त गगन...
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 12:31 AM 2 comments
Labels: रंजना । Ranjana
Wednesday, June 20, 2007
प्रिय, क्या तुम जानती हो
प्रिय,
प्रिय,
क्या कहती हो तुम प्रिय!!
Posted by Sanjeet Tripathi at 9:49 PM 2 comments
Labels: संजीत | Sanjeet
जनुन
जिसे तू देख ले वो फिर भटकने का नाम ना ले
रख लिया है हमने तुझे अपनी नज़रो में क़ैद करके
अब इस दिल को बहकने का इल्ज़ाम ना दे
कौन करेगा बेअदाबी अब इस ईश्क़ में
जहाँ ख़ुद खुदा आ के इश्क़ का पेयाम दे
मोहब्बत है एक दरिया और जवानी इसकी लहरे हैं
अब कौन इनमें डूबने का नाम ना ले
दीवाना बना देता है मुझे इशक़े जनुन उसका
मोहब्बत में कोई जनुन से उभरने का नाम ना ले
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Posted by रंजू भाटिया at 6:13 AM 4 comments
Labels: रंजना । Ranjana
आई लव यू
दिल की धडकन तुम हो
सांसों की सरगम तुम हो
मेरी हो तुम दिन और रैना
बोलो तुमको क्या है कहना
हे हे आई लव यू
प्रीत की डोरी बांधी तुम संग
रहना है अब हम को अंग संग
जब हंसेंगे मिलकर हम तुम
खिल जायेगा सारा उपवन
हे हे आई लव यू
तुम प्यार में मेरी शशी
और इश्क में मेरी लैला
बारिश में मेरी छतरी
और धूप में हो अम्ब्रेला
हे हे आई लव यू
Posted by Mohinder56 at 3:24 AM 2 comments
Labels: मोहिन्दर । Mohinder
Tuesday, June 19, 2007
मेरी मेंहदी , तेरे ख्वाब
मैंने कहा था ना कि
मैं तुम्हारे ख्वाबों में आऊँगी,
इसी कारण
सजने को-
कल बाग में गई थी मैं,
मेंहदी लाने।
निगोड़े काँटे,
शायद दिल नहीं है उनमें,
चुभ कर मुझमें,
मुझे रोक रहे थे।
लेकिन तुमसे वादा किया था ना मैंने,
इसलिए बिना मेंहदी लिए
मैं लौटती कैसे।
फिर कल शाम में मैं
बड़ी बारीकी से
मेंहदी को सिलवट पर पीसी।
हाँ, कुछ दर्द है हाथ में,
लेकिन क्या- कुछ नहीं ।
एक बात कहूँ तुमसे,
शायद सिंदूरी आसमां को
हमारे इकरार का पता था,
इसलिए कल रश्क से,
वह सूरज को लेकर पहले हीं चल दिया।
फिर तुम्हारे लिए,
बड़े प्यार से मैंने
अपने हाथों पर मेंहदी रची ।
कल वक्त पर आई थी ना मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में,
आखिर तुमसे वादा जो किया था मैंने।
एक और बात कहूँ,
कल से बहुत भूखी हूँ मैं,
हाथों में मेंहदी थी ना,
सो,
कुछ खा नहीं पाई।
अभी सोने जा रही हूँ,
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर -
मुझे कुछ खिला दो ना।
-विश्व दीपक
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Posted by विश्व दीपक at 2:37 AM 4 comments
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कबीर की प्रेम साधना
मध्यकालीन कवियों ने प्रेम को सबसे बड़ा पुरुषार्थ माना था। समाज में व्याप्त क्यारियों को ध्वस्त करने के लिए इन कवियों ने प्रेम की शरण ली थी। कबीर साहब ने इस समस्त काल में प्रेम को प्रतिष्ठा प्रदान किया एवं शास्र- ज्ञान को तिरस्कार किया।
मासि कागद छूओं नहिं,कबीर साहब पहले भारतीय व हिंदी कवि हैं, जो प्रेम की महिमा का बखान इस प्रकार करते हैं :-
कलम गहयों नहिं हाथ।
पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।कबीर के अनुसार ब्राह्मण और चंडाल की मंद- बुद्धि रखने वाला व्यक्ति परमात्मा की अनुभूति नहीं कर सकता है, जो व्यक्ति इंसान से प्रेम नहीं कर सकता, वह भगवान से प्रेम करने का सामर्थ्य नहीं हो सकता। जो व्यक्ति मनुष्य और मनुष्य में भेद करता है, वह मानव की महिमा को तिरस्कार करता है। वे कहते हैं मानव की महिमा अहम् बढ़ाने में नहीं है, वरन् विनीत बनने में है :-
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।कबीर साहब ने प्रेम की जो परंपरा चलाई, वह बाद के सभी भारतीय कहीं- न- कहीं प्रभावित करता रहा है। इसी पथ पर चलकर रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान व्यक्तित्व के मालिक हुए।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
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Posted by अजय । Ajay at 1:52 AM 3 comments
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Friday, June 15, 2007
तेरी ही चाहत
पर रूबरू तुझसे कभी ना हो पाएँगे
तेरी ही चाहत है इस दिल में सनम
अब यह बात तुझे कैसे समझा पाएँगे
यूँ ही उतर आएँगे हम तेरे ही ख़यालो में
और तेरी रूह में बस उतर जाएँगे
है यही अपने प्यार की इतनी सी दस्तान अब
तेरी दुनिया हम सिर्फ़ ख्वाबो में बसा जाएँगे
जो मिलना चाहो मुझसे तो देख लेना अपने दिल में झाँक कर
एक हम ही हम तुझे वहाँ नज़र आएँगे !!!!!!!
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
Posted by रंजू भाटिया at 10:12 PM 3 comments
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दिल के बन्धन
कुछ खो सा गया है
एक जाने से तुम्हारे
अनमना सा हो गया हूं
फ़िर न आने से तुम्हारे
रिक्त प्राय हो गया है
आसक्ति का स्त्रोत जैसे
अश्रू नैनों में भरे है
पीडा से ओतप्रोत जैसे
भूल मुझसे क्या हुई है
बस यही मुझको सालता है
ह्रदय है कि पल पल जाने
भीतर भ्रम कितने पालता है
प्यार क्या है, रूह क्या है
कौन जान पाया है कभी
बन्धनों का दिल के शायद
"प्रेम" नाम रखा है यहां
- मोहिन्दर
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Posted by Mohinder56 at 12:18 AM 2 comments
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Thursday, June 14, 2007
अमर-प्रेम
जब एक प्रेम का धागा जुड़ता है,
दिल का कमल तब ही खिलता है
देखता है खुदा भी आसमान से जमीन पर
जब एक दिल दूसरे से बेपनाहा मोहब्बत करता है
सुलगने लगता है तब धरती का सीना भी
जब कोई आसमान बन के बाहो में पिघलता है
लिखी जाती है तब एक दस्तान-ए -मोहब्बत
तब कही जा कर अमर-प्रेम लोगो के दिलों में उतरता है!!
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Posted by रंजू भाटिया at 11:31 PM 4 comments
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तुमसे दूर
दूर-
कब था मैं तुमसे,
क्या ख्वाब देखने बंद कर दिये थे तुमने,
नहीं ना,
तो तुम्हारे ख्वाब जिस गली से गुजरते थे,
वहीं मोड़ पर तो था मैं,
पूछो अपने ख्वाबों से-
कई बार मुड़कर उन सब ने देखा था मुझे।
क्या संवरती न थी तुम,
मुझे याद कर
जब भी अपने केशुओं में
ऊंगली फिराती थी तुम,
हवा-सा स्पर्श तुम्हें मालूम पड़ता था ना,
वह कोई और नही,
मेरी साँसें थीं।
जब भी जमीं पर कदम रखती थी तुम,
चाहे गर्मी भी हो-
तुम्हें मिट्टी की शीतलता मिलती थी,
कितना लाड़ आता था तुम्हें मिट्टी पर,
सच कहूँ,
तुम्हारे तलवे के तले -
अपनी हथेली डाल देता था मैं।
तुम्हें देखकर
जब चिड़िये चहचहाते थॆ,
तुम्हें खुशी मिलती थी,
तुम खुश रहो यही तो चाहता हूँ मैं,
इसलिए अपने हिस्से की बगिया भी
तुम्हारे घर के पास छोड़ आता था मैं।
कुछ मजबूरी थी ,
इसलिए तुम्हारी नजरॊ के सामने न था मैं,
लेकिन तुम हीं कहो,
क्या दूर था मैं तुमसे।
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Posted by विश्व दीपक at 10:32 PM 3 comments
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Wednesday, June 13, 2007
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Salini Aahuja at 11:32 PM 1 comments
Labels: शालिनी । Shalini
प्रेम जीवन का आधार है
प्रेम.... मेरी याद मे सबसे पहले मुझे अपनी मम्मी से प्रेम हुआ होगा, हाँ तब शायद ही इस शब्द के बारे मे पता हो, उस वक्त तो एहसास ही होंगे, फिर ये श्रृंख्ला बढ़ती गयी होगी और आज के रूप मे भरा-पूरा घर परिवार दोस्त देश प्रकृति सभी से प्यार हो गया।
इसी से अन्दाज लग रहा है कि यह एहसास कितना विशाल है, सबकुछ इसमे समा जाता है, फिर भी अभी बहुत जगह रिक्त रह जाता है।
जब यह एहसास ऐसा है तो इसकी परिभाषा कैसे बने?
अक्सर सोचा करती थी इसको परिभाषित करने के लिये और हर बार जो परिभाषा बनी, वो अगली बार अधुरी सी लगती थी। इस जद्दोजेहद मे कई बार कितने ही लोगो से बात की, पर कुछ खास संतुष्टि मिली हो, याद नही। हाँ आजकल जो परिभाषा अंकुरित हुई है, उसको बताने का मन हो रहा है, इसलिये की इस पर फिर से कोई अपनी बात कहे, विवाद हो और फिर एक नयी दिशा मे सोच अग्रसर हो....
मेरे खयाल से, प्यार एक पौधे की तरह है, एक पौधा, जो कि हमे फल फूल लकडी छाया और यहा तक कि जिन्दा रहने के लिए ऑक्सीजन भी देता है, उसके बदले मे उसे हमसे भी आशा रहती है, सही देखभाल की, वरना एक दिन वो पौधा सुखकर गिर जाता है। हाँ एक बात है कि पौधे की तो एक उम्र होती है पर प्यार की कोई उम्र नही होती, आप जब तक उसकी देखभाल करते रहोगे वो हमेशा जिन्दा रहेगा।
दुसरी बात जैसे की पौधा प्रफुल्लित तभी रह सकता है जब कि उसके जड जमीन से और शाखायें आकाश मे लहरा सके, ये कोई बन्धन मे नहीं रह सकता, ना ही जड से काट दिये जाने पर जी सकता है, वैसे ही प्यार विश्वास की जमीन और आजादी के आकाश मे बढता है।
प्रेम जीवन का आधार है, इसके बिना इंसान मशीन बन जायेगा। प्रेम ही जीवीत और अजीवीत मे फर्क करता है...
मै और पत्थर
रास्ते पर कई बार ठोकर खाते है
फर्क इतना है कि
उसके पास दिल नही
मेरे पास है
वो कभी रोता नही
मुस्कुराता नही
एहसास उसमे जगते नही
प्यार किसी से होता नही
यही तो अंतर है कि
वो पत्थर है... और मै इंसान हूँ
फिलहाल इतना ही, आगे बहस पर ... नयी जानकारी के साथ मिलेंगे।
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Posted by गरिमा at 1:01 AM 3 comments
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Monday, June 11, 2007
अब तुमसे क्या कहें
रुत आई है खुमार की अब तुमसे क्या कहें
ख़ुशी कैसी पहले प्यार की अब तुमसे क्या कहें
मुस्कान है बच्चों सी और दिल भला भला
सीरत ये मेरे यार की अब तुमसे क्या कहें
है माँगा दुआ मैं उनको, और पाया भी उन्हे
हद बेलॉस ऐतबार की अब तुमसे क्या कहे
देखूं जो उसके चेहरे को दिखता खुदा मुझे
दीवानी दीद-ए-यार की अब तुमसे क्या कहें
नज़रों से पढ़े उल्फ़त होठों से लिखे प्यार
ये है आदत दिलदार की अब तुमसे क्या कहें
सपने है तिलसमी , के श्रद्धा नशे मैं हैं
बात पर्वाज़े-ए-अफ़्कार की अब तुमसे क्या कहें
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Rut aayi hai khumaar ki ab tumse kya kahen
Khushi kaisi pahle pyaar ki ab tumse kya kahen
Muskaan hai bholii si aur dil bhalaa bhalaa
seerat ye mere yaar kii ab tumse kyaa kahen
hai maaga unko dua main,aur paya hai unhe
Had bailoss aitbaar ki ab tumse kya kahe
Bailoss --- bina shaq ke
Dekhun jo uske chehre ko dikhta khuda mujhe
Deewani deed-e-yaar ki ab tumse kya kahen
Nazron se kahe ulfat hothon se padhe pyaar
Ye hai Aadat dildaar ki ab tumse kya kahen
Sapne hai tilsmi , k Shrddha nashe main hain
Baat parwaze-e-afkaar ki ab tumse kya kahen
Parwaze-e-afkaar ….. soch ki udhan
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
***********************************************Posted by श्रद्धा जैन at 11:46 PM 2 comments
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Aviral | अविरल
jangal ko chaman banane ke liye sirf phoolo ke perh rakh liye jaate hai
baki kaat ker hata de to manmohak bagichaa taiyaar ho jata hai.....
her insaan mein pyar,nafrat ishrya,krodh ke beez hote hai.......
aise hi hame yaha mil julker bus pyar ka ahesaas ko sahejna.....
aur sab beezo ko hatana hai..........
aur guldasta aisa jaha ham khud per
garv ker sake...Ki ha ham insaan hai.......
Awaaz Uthaai Hai Sur Koi Milaega
Naav Chori Hai Paar Koi Lagaega......
Ghav Dikhaya Hai Koi Merham Lagayega
Baat Itni Se Hai Aage Koi Baraheg.....
Jansankhya Bataii Hai Koi Rok Lagaega
Nishana Bataya Hai Teer Koi Chalayega...
Muskaan Jagaii Hai Thahaka Koi Lagaega
San-nata Tora Hai Shore Koi Machayega
Chingaari Jagai Hai Shola Koi Bharkayega
Beez Boya Hai Chaman Koi Banayega.....
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जंगल को चमन बनाने के लिये सिर्फ़ फूलों के पेड़ रख लियें जाते हैं
बाकी काट कर हटा दे तो मनमोहक बगीचा तैयार हो जाता है...
हर इंसान में प्यार, नफ़रत, ईर्ष्या, क्रोध के बीज होते हैं...
ऐसे ही हमें यहाँ मिल जुलकर बस प्यार के एहसास को सहेजना.....
और सब बीज़ो को हटाना है...
और गुलदस्ता ऐसा जहाँ हम ख़ुद पर
गर्व कर सकें...की हाँ हम इंसान है...
आवाज़ उठाई है सुर कोई मिलायेगा
नाव चौड़ी है पार कोई लगाएगा......
घाव दिखाया है कोई मरहम लगायेगा
बात इतनी सी है आगे कोई बढ़ायेगा.....
जनसंख्याँ बताई है कोई रोक लगायेगा
निशाना बताया है तीर कोई चलायेगा...
मुस्कान जगाई है ठहाका कोई लगायेगा
सन्नाटा थोड़ा है शोर कोई मचायेगा...
चिंगारी जगाई है शोला कोई भड़कायेगा
बीज़ बोया है चमन कोई बनायेगा.....
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Archana Gangwar at 3:03 AM 1 comments
Labels: अर्चना | archana