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Wednesday, June 13, 2007

प्रेम जीवन का आधार है

प्रेम.... मेरी याद मे सबसे पहले मुझे अपनी मम्मी से प्रेम हुआ होगा, हाँ तब शायद ही इस शब्द के बारे मे पता हो, उस वक्त तो एहसास ही होंगे, फिर ये श्रृंख्ला बढ़ती गयी होगी और आज के रूप मे भरा-पूरा घर परिवार दोस्त देश प्रकृति सभी से प्यार हो गया।

इसी से अन्दाज लग रहा है कि यह एहसास कितना विशाल है, सबकुछ इसमे समा जाता है, फिर भी अभी बहुत जगह रिक्त रह जाता है।

जब यह एहसास ऐसा है तो इसकी परिभाषा कैसे बने?

अक्सर सोचा करती थी इसको परिभाषित करने के लिये और हर बार जो परिभाषा बनी, वो अगली बार अधुरी सी लगती थी। इस जद्दोजेहद मे कई बार कितने ही लोगो से बात की, पर कुछ खास संतुष्टि मिली हो, याद नही। हाँ आजकल जो परिभाषा अंकुरित हुई है, उसको बताने का मन हो रहा है, इसलिये की इस पर फिर से कोई अपनी बात कहे, विवाद हो और फिर एक नयी दिशा मे सोच अग्रसर हो....

मेरे खयाल से, प्यार एक पौधे की तरह है, एक पौधा, जो कि हमे फल फूल लकडी छाया और यहा तक कि जिन्दा रहने के लिए ऑक्सीजन भी देता है, उसके बदले मे उसे हमसे भी आशा रहती है, सही देखभाल की, वरना एक दिन वो पौधा सुखकर गिर जाता है। हाँ एक बात है कि पौधे की तो एक उम्र होती है पर प्यार की कोई उम्र नही होती, आप जब तक उसकी देखभाल करते रहोगे वो हमेशा जिन्दा रहेगा।

दुसरी बात जैसे की पौधा प्रफुल्लित तभी रह सकता है जब कि उसके जड जमीन से और शाखायें आकाश मे लहरा सके, ये कोई बन्धन मे नहीं रह सकता, ना ही जड से काट दिये जाने पर जी सकता है, वैसे ही प्यार विश्वास की जमीन और आजादी के आकाश मे बढता है।

प्रेम जीवन का आधार है, इसके बिना इंसान मशीन बन जायेगा। प्रेम ही जीवीत और अजीवीत मे फर्क करता है...

मै और पत्थर
रास्ते पर कई बार ठोकर खाते है
फर्क इतना है कि
उसके पास दिल नही
मेरे पास है
वो कभी रोता नही
मुस्कुराता नही
एहसास उसमे जगते नही
प्यार किसी से होता नही
यही तो अंतर है कि
वो पत्थर है... और मै इंसान हूँ


फिलहाल इतना ही, आगे बहस पर ... नयी जानकारी के साथ मिलेंगे।

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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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