जलाना अलाव
दूर से आऊंगा देखते मैं वो
जगमगाती रोशनी
तेरी आंखों मे तड़पती मिलन की खूशबू
को महकाऊँगा हर कण-कण मे
झलकती होगी मेरे इंतज़ार मे कटी हुई जिन्दगी,बेरंग बेनूर
आसमान की तरह बेतरतीब बिखरी
मन की इच्छाओं को
समेटकर पानी मे बहाना
या फिर हवाओं मे उडाना
तेरेंगे मछलियों से
या फड़फड़येंगे पंछियों से
जैसे भी पहुंचे,जहाँ भी
पहुंचे यहाँ वहाँ कहीं भी...
तेरे उन ख्वाहीशों मे हर एक
शब्दों के अन्दर अपनी परछाइयों
को हासिल कर,प्यार के साए
मे लिपटा आऊंगा, मेरे मितवा
बस हर रात, घर के आँगन मे
जलाना अलाव.........
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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7 comments:
बहुत सुन्दर-बस हर रात जलाना अलाव-कोमल अनुभूति है प्रेम की. बधाई.
कलकत्ते में दुर्गा पूजा की चहल-पहल शुरू हो चुकी है. आज सप्तमी है. घर के बाहर सुबह सुबह ढाक की आवाजें आ रही हैं. नींद खुल गयी और चिट्ठाजगत खोल लिया. पहली नज़र पड़ी "जलाना अलाव" पर.
मन खुश हो गया. बहुत ही खूबसूरत ख़्याल, और उतना ही खूबसूरत अंदाज़-ए-बयां. आज सारे दिन ये रचना बार बार याद आती रहेगी. बहुत बढ़िया दिव्या जी. आप को भविष्य में भी ज़रूर पढ़ता रहूँगा. अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
मीत
बहुत ही सुंदर लिखा है दिव्या जी आपने ..
तेरे उन ख्वाहीशों मे हर एक
शब्दों के अन्दर अपनी परछाइयों
को हासिल कर,प्यार के साए
मे लिपटा आऊंगा, मेरे मितवा
बस हर रात, घर के आँगन मे
जलाना अलाव.........
दिल को छु लेने वाली पंक्तियाँ है यह .बधाई सुंदर रचना के लिए
दिव्या जी बहुत सुंदर रचना । घर से दूर प्रेमी की भावनाओं को बडे सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया है।
वाह, अच्छी कविता है..!!
achhi kavita hai. prem ka naya ehsaas hai aap ki kavita. prem ko jeete rahiye. badhai. aur likhte rahiye......
aapki ye nazm aapne aap mein ek kahani hai ..
bahut sundar shabdo ka prayog hai
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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