भरी महफ़िल जो तुमने, मोहब्बत-ए-इज़हार कर दिया,
लो हमने भी आज अपने दिल को तुम्हारे नाम कर दिया,
चाहत मे मेरी हर पल, तुम धड़कन बन समाई हो,
तुम्हारे इकरार ने मोहब्बत को अपनी जवान कर दिया.
हर सुबह हर शाम मेरी बस तुमसे है सनम,
रातों को भी हमने अपनी तुम्हारे नाम कर दिया.
आज बाहों मे लेने की तुमको, फिर तमन्ना जागी है,
तस्वीर तुम्हारी ने लिपट सीने से, यह ज़ाहिर कर दिया.
कहनी और कई बातें तुमसे, पर इस महफ़िल मे नही,
वरना कहोगी की सर-ए-आम हमने तुम्हे बदनाम कर दिया.... !!!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Monday, September 17, 2007
मोहब्बत-ए-इज़हार
Posted by Vicky at 11:29 PM
Labels: विक्की । Vicky
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8 comments:
स्वागत है आपका विक्कीजी :)
बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना
आपसे बहुत ही सुंदर रचनाओं की आशा है
जल्दी ही हमे आपकी और भी कविता पढने को मिलेंगी
इसी शुभकामना के साथ
रंजना
वाह!
बहुत ही खूबसूरत प्रेम रचना -
भरी महफ़िल जो तुमने, मोहब्बत-ए-इज़हार कर दिया,
लो हमने भी आज अपने दिल को तुम्हारे नाम कर दिया,
:) लगे रहो!
अहा तो यहाँ प्रेम की कक्षा ली जाती है, रंजना जी , आप ही होंगी न इस प्रेमश्रम की प्राध्यापिका हा हा हा , भाई विक्की जी अच्छी रचना है पहले प्यार की कोमल अनुभूतियाँ हमेशा ही गुदगुदा जाती है बधाई
वाहSSSSSSSSS एक संपूर्ण प्रेममय रचना… पहली पंक्ति से अंत तक जो बांधे रखे और याद दिलाए प्रीत की… और क्या चाहिए एक भटके हुए दिल को…।
मित्र , सर्वप्रथम तो आपका प्रेमाश्रम पर स्वागत करता हूँ। कुछ कहना चाहूँगा। लोगों ने आपकी रचना की प्रशंसा की ... मैं केवल भाव को अच्छा मानता हूँ।
अगर आप गज़ल विधा में लिखना चाहते हैं तो कुछ नियम-कानून होते हैं ....उन्हें जरूर पढें।
और यह बताईय़े कि मोहब्बत-ए-इज़हार होना चाहिए था कि इज़हार-ए-मोहब्बत।
कहानी और कई बातें तुमसे, पर इस महफ़िल में नहीं
वरना कहोगी कि सर-ए-आम हमने तुम्हे बदनाम कर दिया
विक्की जी, आपके रचना के इस कड़ी के साथ तन्हा कवि महोदय जी को येही कहेना चाहूंगा कि अभी तो सिखा है चलना हमने सम्हल सम्हल के, जरूरत पडेगी हमे तुम्हारे निर्देशन की। वैसे सच कहूं तो बडे ही भाग्यशाली हो यार जो तुम्हे ऐसे मार्गदर्शक मिले है। वैसे मैं भी चाहूँगा कि तन्हा कवि जी हमे भी गजल के कुछ नियम कायदे सिखाये। सुंदर रचना प्यारे । आलोचना के डर से कर्म को छोड़ना नहीं। आलोचना तो हमें बलवती बनाती है। कुछ और कहेना था पर इस महेफिल में नहीं। नहीं तो कहोगे कि...............
तन्हा कवि की बात से सहमत हूँ ..... हाँ यह ज़रूर कहूँगा की कहने का ढंग सही नही है. उर्दू मे इज़हारे मोहब्बत का मतलब होता है मोहब्बत का इज़हार. "मोहब्बत का इज़हार" से रिप्लेस कर दे तो ठीक रहेगा.
कठोर प्रतिक्रिया करने वाले शायद यह नही समझते कि रचना का जन्म शिशु के जन्म के समान ही होता है जिसमे रचनाकार के मष्तिष्क मे प्रसव वेदना के समतुल्य पीड़ा और रचना के जन्म के बाद मातृत्व सा गर्व महसूस होता है.
अब यह किस्मत कि बात है कि एक ही वार्ड मे दो माओं ने बच्चे जने....... एक बच्चा अगर काना हो तो इसमे माँ का क्या दोष ...... माँ के लिए तो काना बच्चा ही राजकुमार होगा
रचनाधर्मिता जारी रखें ..........शुभकामनाएं
यह रचना शायद ऐसे ठीक लगे
भरी महफ़िल जो तुमने, मोहब्बत का इज़हार कर दिया,
लो हमने भी आज दिल, तुम पर निसार कर दिया,
चाहत मे मेरी हर पल, तुम धड़कन बन समाई हो,
तुम्हारे इकरार ने मोहब्बत को अपनी जवान कर दिया.
हर सुबह हर शाम मेरी, बस तुम्ही से है सनम,
रातों को भी हमने अपनी तुम्हारे नाम कर दिया.
तुमको बाहों मे लेने की तमन्ना आज फिर दिल मे जगी,
सीने से लिपटी तेरी तस्वीर ने हाले दिल का बयां कर दिया.
कहनी थी कुछ और बातें तुमसे, पर आज इस महफ़िल मे नही,
वरना कहोगी की सर-ए-आम हमने बदनाम तुमको कर दिया.... !!!
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