मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Wednesday, June 13, 2007
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
Posted by Salini Aahuja at 11:32 PM
Labels: शालिनी । Shalini
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1 comments:
वाह!
शालिनीजी, आपने तो मीरां का भजन भी सुना दिया, मजा आया।
मीरां का प्रेम, भक्ति का एक नया रूप था...धन्यवाद!
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