साभार - टी.डी.आई.एल.
मध्यकालीन कवियों ने प्रेम को सबसे बड़ा पुरुषार्थ माना था। समाज में व्याप्त क्यारियों को ध्वस्त करने के लिए इन कवियों ने प्रेम की शरण ली थी। कबीर साहब ने इस समस्त काल में प्रेम को प्रतिष्ठा प्रदान किया एवं शास्र- ज्ञान को तिरस्कार किया।
मासि कागद छूओं नहिं,कबीर साहब पहले भारतीय व हिंदी कवि हैं, जो प्रेम की महिमा का बखान इस प्रकार करते हैं :-
कलम गहयों नहिं हाथ।
पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोई।कबीर के अनुसार ब्राह्मण और चंडाल की मंद- बुद्धि रखने वाला व्यक्ति परमात्मा की अनुभूति नहीं कर सकता है, जो व्यक्ति इंसान से प्रेम नहीं कर सकता, वह भगवान से प्रेम करने का सामर्थ्य नहीं हो सकता। जो व्यक्ति मनुष्य और मनुष्य में भेद करता है, वह मानव की महिमा को तिरस्कार करता है। वे कहते हैं मानव की महिमा अहम् बढ़ाने में नहीं है, वरन् विनीत बनने में है :-
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।कबीर साहब ने प्रेम की जो परंपरा चलाई, वह बाद के सभी भारतीय कहीं- न- कहीं प्रभावित करता रहा है। इसी पथ पर चलकर रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान व्यक्तित्व के मालिक हुए।
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय।
*******************************************
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
*******************************************
3 comments:
इश्क़ करना है तो रूह से दिल से करो
सबकी ज़िंदगी में बस प्यार के रंग भरो
भर दो उदास दिलो में अब प्यार ही प्यार
ख़ामोश फ़िज़ा को इश्क़ की ख़ुश्बू से भरो !!
सही और सच प्यार का रंग भरा ..अच्छा लगा पढ़ना
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.....
रंजना:)
वाह!
अजयजी, आप तो "कबीर की प्रेम साधना" ही खोज लाये :)
धन्यवाद!
संत कबीर की याद दिलाने का शुक्रिया !
Post a Comment