संजीतजी,
आपकी कविता ने मुझे कई विचार दिए, जिनमें से कुछ यहाँ पोस्ट कर रही हूँ, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!!!
(1)
प्यार क्या है, एक राही की मंज़िल.......
एक बंज़र जमी पर, अमृत की प्यास......
पारस पत्थर को ढुँढ़नें की खोज.......
ना पूरा होने वाला एक सुंदर सपना.....
जैसे की बड़ा मुश्किल हो कोई मिलना....
खो के फिर ना पाया हो कहीं पाया .......
मिल के भी,जो ना हुआ हो अपना........
(2)
प्यार है इक एहसास...
दिल की धड़कनी को छूता राग...
या है पागल वसंती हवा कोई...
या है दिल में झिलमिल करती आशा कोई...
या प्यार है एक सुविधा से जीने की ललक...
जो देती है थके तन और मन को एक मुक्त गगन...
**********************************************
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
**********************************************
Thursday, June 21, 2007
प्यार क्या है!
Posted by रंजू भाटिया at 12:31 AM
Labels: रंजना । Ranjana
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
शानदार रंजना जी, प्रेम या प्यार अपने आप में इतने आयामों को समेटे हुए है कि चाहे जिस नजरिए से देखें कई परिभाषाएं दिख पड़ती हैं!
शुक्रिया!!
वाह जी वाह, हम भी इसी लाईन पर कुछ लिखने की कोशिश करेंगे...
Post a Comment