मैंने कहा था ना कि
मैं तुम्हारे ख्वाबों में आऊँगी,
इसी कारण
सजने को-
कल बाग में गई थी मैं,
मेंहदी लाने।
निगोड़े काँटे,
शायद दिल नहीं है उनमें,
चुभ कर मुझमें,
मुझे रोक रहे थे।
लेकिन तुमसे वादा किया था ना मैंने,
इसलिए बिना मेंहदी लिए
मैं लौटती कैसे।
फिर कल शाम में मैं
बड़ी बारीकी से
मेंहदी को सिलवट पर पीसी।
हाँ, कुछ दर्द है हाथ में,
लेकिन क्या- कुछ नहीं ।
एक बात कहूँ तुमसे,
शायद सिंदूरी आसमां को
हमारे इकरार का पता था,
इसलिए कल रश्क से,
वह सूरज को लेकर पहले हीं चल दिया।
फिर तुम्हारे लिए,
बड़े प्यार से मैंने
अपने हाथों पर मेंहदी रची ।
कल वक्त पर आई थी ना मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में,
आखिर तुमसे वादा जो किया था मैंने।
एक और बात कहूँ,
कल से बहुत भूखी हूँ मैं,
हाथों में मेंहदी थी ना,
सो,
कुछ खा नहीं पाई।
अभी सोने जा रही हूँ,
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर -
मुझे कुछ खिला दो ना।
-विश्व दीपक
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Tuesday, June 19, 2007
मेरी मेंहदी , तेरे ख्वाब
Posted by विश्व दीपक at 2:37 AM
Labels: तन्हा । Tanha
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4 comments:
आपकी प्रेम-कविताएँ तो मुझे हमेशा ही प्रभावित करती रही हैं। यह भी बढ़िया है।
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर -
मुझे कुछ खिला दो न ।
बिलकुल हृदय के करीब है यह रचना।
aapki yeh kavita bahut achchhi lagi. dil ko chhooooo gayee
thanks kehkar apman nahi karana chhahhuga but its too good
aapki yeh kavita bahut achchhi lagi. dil ko chhooooo gayee
thanks kehkar apman nahi karana chhahhuga but its too good
बहुत ही सुन्दर प्रेम कविता!
तन्हाजी, आपकी प्रेम कविताएँ मन मोह लेती है, सच में।
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