दूर-
कब था मैं तुमसे,
क्या ख्वाब देखने बंद कर दिये थे तुमने,
नहीं ना,
तो तुम्हारे ख्वाब जिस गली से गुजरते थे,
वहीं मोड़ पर तो था मैं,
पूछो अपने ख्वाबों से-
कई बार मुड़कर उन सब ने देखा था मुझे।
क्या संवरती न थी तुम,
मुझे याद कर
जब भी अपने केशुओं में
ऊंगली फिराती थी तुम,
हवा-सा स्पर्श तुम्हें मालूम पड़ता था ना,
वह कोई और नही,
मेरी साँसें थीं।
जब भी जमीं पर कदम रखती थी तुम,
चाहे गर्मी भी हो-
तुम्हें मिट्टी की शीतलता मिलती थी,
कितना लाड़ आता था तुम्हें मिट्टी पर,
सच कहूँ,
तुम्हारे तलवे के तले -
अपनी हथेली डाल देता था मैं।
तुम्हें देखकर
जब चिड़िये चहचहाते थॆ,
तुम्हें खुशी मिलती थी,
तुम खुश रहो यही तो चाहता हूँ मैं,
इसलिए अपने हिस्से की बगिया भी
तुम्हारे घर के पास छोड़ आता था मैं।
कुछ मजबूरी थी ,
इसलिए तुम्हारी नजरॊ के सामने न था मैं,
लेकिन तुम हीं कहो,
क्या दूर था मैं तुमसे।
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है
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Thursday, June 14, 2007
तुमसे दूर
-विश्व दीपक ’तन्हा’
Posted by विश्व दीपक at 10:32 PM
Labels: तन्हा । Tanha
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3 comments:
बहुत ही ख़ूबसूरत लिखा है आपने
प्रेम से दूर रहना संभंव नहीं, आप दूर नहीं थे :)
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है.
प्रेम इबादत है प्रेम है पूजा . प्रेम ही रब है और न दूजा
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