हमें क्या पड़ी थी , नींद की जो आरजू करते,
हमारे ख्वाब ,खुली नज़रों से थें गुफ्तगू करते ।
मसीहा इश्क का बेमौत शायद मर चुका होता,
जो गज़लों से मोहब्बत करना ना शुरू करते।
कोई कह दे उन्हें, वो शब भर बेसब्र ना रहें,
जग लेते हैं चकवा-चकई भी जुस्तजू करते।
निगाहे-नूर जिरह कर ले भी तो जान आ जाए,
जाने क्या मिले उनको , हमें बेआबरू करते ।
गर तबियत से मिले दिल तो रश्क भी करूँ,
आह! ना बने बीमार दिल को य़ूँ उदू करते।
'तन्हा' , नामुरादे-इश्क ऎसी बला है जान ले,
बस पल लगे नब्जों के पानी को लहू करते ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Friday, August 17, 2007
एक गज़ल
Posted by विश्व दीपक at 9:04 AM
Labels: तन्हा । Tanha
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6 comments:
त्न्हा जी, बहुत बेह्तरीन गजल है।बधाई।
निगहे-नूर जिरह कर ले भी तो जान आ जाए,
जाने क्या मिले उनको, हमें बेआबरू करते।
उनकी आवाज सुनने के लिए तडपता था दिल, उनको एक झलक देखने के लिए कुछ भी मन्जुर था। लेकीन वह नेही मिली। आप की एक गजल मे मुझे अपनी जिन्दगी दिख गयी। बधाई।
हमें क्या पड़ी थी , नींद की जो आरजू करते,
हमारे ख्वाब ,खुली नज़रों से थें गुफ्तगू करते ।
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है तन्हा ज़ी
beautiful gajal i liked it very much and thanks for advising me to join other aggregatorsNishikantWorld
वाह तन्हा जी,
एक से बढ़कर एक लिखा है। पढ़कर आनन्द आ गया। बधाई
वाह, अच्छी है..!!
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