चलो आज आखिरी यह इंतजाम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
यह इश्क सो न जाए, थपकी न देना अब तुम,
मैं बात यूँ जगाऊँ , करवट के होश हों गुम ,
अबकी जो शब सजे तो लब भर के चली आना-
बादल के माथे का वो आफताबी सारा कुमकुम।
सुनो!तेरे लबों के सूरज अपने तमाम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
शब खत्म न हो अपने मिलन की यह निगोड़ी,
दो रात को जो जोड़े , उस दिन की कर लूँ चोरी,
चाहत की कैंची लेकर दिन टुकड़े-टुकड़े कर दूँ-
हर शब में डाल दूँ मैं , हर कतरन थोड़ी-थोड़ी।
आज बाहों में एक-दूसरे का ऎहतराम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Friday, September 7, 2007
शब भर
Posted by विश्व दीपक at 2:13 PM
Labels: तन्हा । Tanha
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3 comments:
यह इश्क सो न जाए, थपकी न देना अब तुम,
मैं बात यूँ जगाऊँ , करवट के होश हों गुम ,
अबकी जो शब सजे तो लब भर के चली आना-
बादल के माथे का वो आफताबी सारा कुमकुम।
सुनो!तेरे लबों के सूरज अपने तमाम कर लें-
पहचान अपनी-अपनी दूजे के नाम कर लें।
वाह! शब्दशिल्पीजी, प्रेम-रंग में भी आपने कमाल कर दिया है। "अबकी जो शब सजे तो लब भर के चली आना", पंक्ति मोहित कर रही है, बधाई!!!
I came accross your blog through Mr. Jitendra Chaudhry's website who left a comment on my Hindi blog. I tried writing my comment in Hindi but was not successful. Good writings. Keep it up.
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
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कह दो पुकार कर सुनले दुनिया सारी
हम हिन्द तनय हैं हिन्दी मातु हमारी
भाषा हम सब की एक मात्र हिन्दी हैं
सुभ,सत्व और गण की खान ये हिन्दी है
भारत की तो बस प्राण ये हिन्दी हैं
हिन्दी जिस पर निर्भर हैं उन्नति सारी
हम हिन्द तनय हैं हिन्दी मातु हमारी
१९३४ मे लाहौर से रंगभुमि मे प्रकाशित मनोरंजन भारती जी की यह कविता आप www.ekavisammelan.blogspot.com पर पुरी पढ सकते हैं तथा अशोक चक्रधर जी की आवाज मे इसे सुन भी सकते हैं हर हिन्दी भाषी की रगो को नव स्फ़ुर्ति नव चेतना का संचार करने वाली यह कविता आज भी प्रासंगिक है आप भी इस कविता का अधिक से अधिक हिन्दी भाषियो को जानकारी दे सकते हैं .
प्रतीक शर्मा (www.hindiseekho.com)
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