एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा,
क्यूँ कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा
किससे मिलने को बेचैन है चाँदनी,
क्यूँ मदहोश है दिल की ये रागिनी,
बनके बादल वफ़ा का बरसने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
गुम हूँ मै गुमशुदा की तलाश में
खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में
ये कौन सांस बनके दिल में महकने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
हर तरफ़ फ़िजाओं के हैं पहरे मगर,
दम निकलने न पायें जरा देखो इधर,
जिसकी आहट पर चाँद भी सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है
चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है
बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
सुनीता(शानू)
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Thursday, July 19, 2007
एक अजनबी
Posted by सुनीता शानू at 12:53 PM
Labels: शानू । Shanoo
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11 comments:
बढ़िया मनमोहक लिख रही हो. लिखती रहो. अच्छा लगता है पढ़कर. साधुवाद दिये देता हूँ. :
प्रेम के भाव हर पंक्ति में हिलोरें ले रहा है, सुन्दर और मनोहारी कविता के लिए बधाई ।
लवेरिया की निशानी है... चेक अप कराना आवशयक है :)
दिल के जज्बात को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है, हॉं यही प्यार है। लगता है हो गया है मगर किससे ?
वाह वाह क्या बात है सुनीता जी, हमने तो पहले ही पूछा था आपसे कि किसकी संगत का असर है जो आजकल कुछ ज्यादा ही बढ़िया लिख रही है आप।
वैसे ये बताईये कि --
है कौन वह अजनबी, धड़कने दिल में जो लगा,
किससे मिलने को बैचेन यह चांदनी, जो अपना सा लगने लगा।
किस गुमशुदा की तलाश मे हो गई गुम,
किसकी आहट पे यह चांद संवरने लगा।
अक्षय के पापा अजनबी कब से हो गये? :-)
गुम हूँ मै गुमशुदा की तलाश में
खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में...
रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है
चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है...
ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी...
प्रेम ऐसा ही होता है, बहुत खूब! बधाई!
sunitaji very nice aap ki kavita vakehi me dil ko chu leti hai pyar kya hai iska issse acha defination koi nahi de sakta
अंतिम पंक्तियाँ ख़ास-तौर से अच्छी हैं।
न मैं जिन्दा हूँ न मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
sunita ji:
sundar... ati sundar.. kya jazbaat likhe hain..
न मैं जिन्दा हूँ न मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
dil ko chhoo liya in panktiyon ne..
Badhai....
ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न तेरी खबर ही आयेगी
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा
दिल बाग-बाग हो गया शानू जी। बहुत दिनों बाद प्रेमाश्रम पर ऎसी रचना पढने को मिली है।
प्रेम पगी कविता यही तो है...
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