तुम, तुम और तुम
ख्वाबों में तुम, ख्यालों में तुम!
तुम, तुम और तुम
जीवन में तुम, जीवन के पार तुम!
तुम, तुम और तुम
हर लम्हा तुम, हर पल तुम!
तुम, तुम और तुम
सोचता तुम्हें, विचारता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
सोता तुम्हें, जागता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
उठता तुम्हें, बैठता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
खुली आंखों में तुम, बंद आंखों मे तुम!
तुम, तुम और तुम
सिमट सी गई है ज़िंदगी मेरी तुममें,
हां! तुममें ही!!
ख्वाबों में तुम, ख्यालों में तुम!
तुम, तुम और तुम
जीवन में तुम, जीवन के पार तुम!
तुम, तुम और तुम
हर लम्हा तुम, हर पल तुम!
तुम, तुम और तुम
सोचता तुम्हें, विचारता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
सोता तुम्हें, जागता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
उठता तुम्हें, बैठता तुम्हें!
तुम, तुम और तुम
खुली आंखों में तुम, बंद आंखों मे तुम!
तुम, तुम और तुम
सिमट सी गई है ज़िंदगी मेरी तुममें,
हां! तुममें ही!!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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7 comments:
अपने इश्क़ का सफ़र अब यूँ तय करके देखे
तेरी राहा में अब ख़ुद चल के हम देखे
तेरे ही वजूद से ज़िंदा है मेरा भी वजूद
आज बस तेरी बाहों में हम सिमट के देखे
छा रहा है मुझ पैर तेरी नज़रो का जादू
आज तेरे इश्क़ में हैर हद को पार करके हम देखे...
सचमुच इश्क़ जब होता है तो हर अक्स में सिर्फ़ चाहत का रंग ही छलकता है ..बहुत ही सुंदर रचना संजीत जी ..चित्र भी बहुत ही मनमोहक है
लगता है आपको भी इश्क हो गया है...इसीलिये तो दिल से निकली रचना खुद-ब-खुद अपनी खूबसूरती बयान कर रही है...:)
सुनीता(शानू)
क्या हुआ भई--यह तुम तुम तुम??? :) बढ़िया है..खबर करते रहना अपने अंदाज में.
भईया संजीतजी
भगवान आपको ठीक रखे।
आप प्रेम में हैं, बहुत अच्छा लगा।
पर जरा ये भी देख लें
बार-बार सिनेमा का खर्च तुम
कोने की सीट की सर्च तुम
हर तरफ से लिया या उधार तुम
पहलवान भाई ने जो मारा, वह मार तुम
दफ्तर से एब्सेंट तुम
हंड्रेड परसेंट तुम
शुभकामनाएं
वाह संजीत भाई प्रेम का क्या रूप प्रस्तुत किया है । रंजू जी की बातों से सहमत हूं, बधाई ।
"तुम, तुम और तुम" से अपनी ये रचना याद आ गई .. यहाँ देखियेगा :
http://www.kritya.in/0207/hn/poetry_at_our_time.html
बहुत खूब ! प्रेम गली अति साँकरी जा मैं दो न समाए....सो तुम ही तुम.... बहुत सुन्दर भाव ! प्रेम ही ईश्वर है , प्रेम ही सत्य है..
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