1.
તારી પ્રેમ નીતરતી આંખો વણ-કહી વાત કહી ગઇ
તેની અબોલ ભાષા સમજી પાંપણ મારી ઝુકી ગઇ
શબ્દો વિનાની એક ગઝલ બંધ હોઠો થી પ્રગટ થઇ
તારાં હ્રદય માં થી નીકળી મારાં હ્રદય માં વસી ગઇ.
2.
ઝિંદગી નાં કેવા અજીબ મોડ પર આવી ને અટકી છું..!
તને શોધવા જ્યાં ને ત્યાં ભટ્કી છું..!
સગડ મળે જો ક્યાંય થી પણ તારાં
તને નિહાળવા બેચૈન છે નયનો મારાં
કેવી રીતે ભુલાઇ ગયાં જે દીધા હતાં તે વાયદા..?
ઝુરવું ને મરવું શું એ જ છે પ્રીત કેરા કાયદા..?
આંસુ બની ટપકી રહે છે યાદ તારી
ક્યારેક તો નિરાશા મટી આશા ફળશે મારી..!!
3.
ખુલ્લી આંખોએ જોયું મેં એક શમણું,
શમણાંમાં જોયું મેં મુખ તારું નમણું,
એ નમણાં મુખ પર રેલાઇ રહ્યું છે મંદ મંદ સ્મિત ,
જાણે કે વાંસળી માં થી વહી રહ્યું મધુર સંગીત..!..
હે સમય, તું ધીરે ચાલ, શમણું મારું જાય ના ટૂટી,
શમણાંની આ શરુઆત છે, હજુ તો એને છે પાંખો ફુટી…
4.
ના જાણે કેવું છે આ અનોખું બંધન...!
હૃદય મહીં વહી રહ્યું લાગણી ભીનું સ્પંદન
સૂરો તણી સરગમમાં ગુંજી રહ્યું ગુંજન
હૈયાની પ્રિત તણું બંધાઈ રહ્યું આ બંધન
પ્રેમ તણા પુષ્પોથી મહેકી રહ્યું મધુવન
ના જાણે કેવું છે આ અનોખું બંધન...!
5.
ગગનમાં તું, ધરામાં તુ,
પવનમાં તું, ઝરણામાં તું
મનમાં તું, હૃદયમાં તુ
નયનમાં તું, સ્વપ્નમાં તું
વાણીમાં તું, વિચારમાં તું
દ્રષ્ટિમાં તું, સૃષ્ટીમાં તું
શોધી જડુ ના, તારામય હું...!
(ચેતના શાહ)
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
Monday, March 10, 2008
પ્રેમ
Posted by गिरिराज जोशी at 3:58 AM 6 comments
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Saturday, October 27, 2007
तलाश
वर्षों से मन में आस थी
एक दोस्त की तलाश थी,
थक गयी थी ज़िन्दगी
यूं ढूंढते ही ढूंढते,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
सैकड़ों सरिता मिलीं
कुछ रेत कि कुछ नीर की,
पायी ना कोई धार निर्मल
सो ज़िन्दगी अधीर थी,
क्या कहूँ कैसे कहूँ
ये किस तरह की प्यास थी,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
चलता रह फिर ये सफ़र
पड़ाव भी जाते रहे,
झूठी तसल्ली देकर खुद को
खुद ही समझाते रहे,
जानती थी ज़िन्दगी
ये मात्र एक परिहास थी,
सो ज़िन्दगी की राह में
खुद ज़िन्दगी उदास थी ।
पर एक दिन यूं ही अचानक !
मेहरबाँ वो रब हुआ,
मुझको नही मालुम अरे !
कैसे हुआ ये कब हुआ !
उम्मीद जिसकी थी नही
लो वो तो मेरे पास थी,
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
सुमन सा कोमल सु-मन मैं
देखता ही रह गया,
स्नेह की आँधी चली और
दूर तक फिर बह गया,
सोचा अकेला हो गया
फिर से ज़माने में मगर,
आखें खुलीं तो पाया मैंने
वह तो मेरे पास थी
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
अब ज़िन्दगी खुद ज़िन्दगी के
जीने का एहसास थी ।
LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
Posted by भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav at 4:14 AM 6 comments
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Wednesday, October 17, 2007
जलाना अलाव.........
जलाना अलाव
दूर से आऊंगा देखते मैं वो
जगमगाती रोशनी
तेरी आंखों मे तड़पती मिलन की खूशबू
को महकाऊँगा हर कण-कण मे
झलकती होगी मेरे इंतज़ार मे कटी हुई जिन्दगी,बेरंग बेनूर
आसमान की तरह बेतरतीब बिखरी
मन की इच्छाओं को
समेटकर पानी मे बहाना
या फिर हवाओं मे उडाना
तेरेंगे मछलियों से
या फड़फड़येंगे पंछियों से
जैसे भी पहुंचे,जहाँ भी
पहुंचे यहाँ वहाँ कहीं भी...
तेरे उन ख्वाहीशों मे हर एक
शब्दों के अन्दर अपनी परछाइयों
को हासिल कर,प्यार के साए
मे लिपटा आऊंगा, मेरे मितवा
बस हर रात, घर के आँगन मे
जलाना अलाव.........
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by divya at 11:42 AM 7 comments
Labels: दिव्या । Divya
Tuesday, September 18, 2007
मोहब्बत में ऐसा क्यों होता है
वो मुझसे जुदा हो कर भी जुदा नही होता है
हर एक पल बस तलाश करती हैं उसको मेरी नज़रे
हर एक नज़ारे में बस उसका ही गुमान होता है
देखा करते हैं हम ख्वाब उनके ही दिन रात
सिर्फ़ वो ही वो मेरे दिल के क़रीब होता है
ढलकता है जब भी रात का आँचल चाँद के मुख से
हर बीतते पल में उनसे मिलने का सबब होता है
समा जाए धड़कनों में अब धड़कने कुछ ऐसे
हर पल उनकी सांसो में गुम होने का नशा होता है
अक्सर उनको महसूस किया है मैने अपने आस पास
क्या यह सच है या मेरे वजूद पर उनका यूँ ही असर होता है
सच कर दे इस ख़्वाब को अपनी बाहों में भर के तू सनम
कि आज की रात का सफ़र भी अब यूँ ही ख़्वाबों में खत्म होता है
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 9:33 PM 12 comments
Labels: रंजना । Ranjana
Monday, September 17, 2007
मोहब्बत-ए-इज़हार
भरी महफ़िल जो तुमने, मोहब्बत-ए-इज़हार कर दिया,
लो हमने भी आज अपने दिल को तुम्हारे नाम कर दिया,
चाहत मे मेरी हर पल, तुम धड़कन बन समाई हो,
तुम्हारे इकरार ने मोहब्बत को अपनी जवान कर दिया.
हर सुबह हर शाम मेरी बस तुमसे है सनम,
रातों को भी हमने अपनी तुम्हारे नाम कर दिया.
आज बाहों मे लेने की तुमको, फिर तमन्ना जागी है,
तस्वीर तुम्हारी ने लिपट सीने से, यह ज़ाहिर कर दिया.
कहनी और कई बातें तुमसे, पर इस महफ़िल मे नही,
वरना कहोगी की सर-ए-आम हमने तुम्हे बदनाम कर दिया.... !!!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Vicky at 11:29 PM 8 comments
Labels: विक्की । Vicky
Saturday, September 15, 2007
Every Day You Play
Every Day You Play
Every day you play with the light of the universe.
Subtle visitor, you arrive in the flower and the water.
You are more than this white head that I hold tightly
as a cluster of fruit, every day, between my hands.
You are like nobody since I love you.
Let me spread you out among yellow garlands.
Who writes your name in letters of smoke among the stars of the south?
Oh let me remember you as you were before you existed.
Suddenly the wind howls and bangs at my shut window.
The sky is a net crammed with shadowy fish.
Here all the winds let go sooner or later, all of them.
The rain takes off her clothes
The birds go by, feeling.
The wind. The wind.
I can contend only against the power of men.
The storm whirls dark leaves
and turns loose all the boats that were moored last night to the sky.
You are here. Oh, you do not run away.
You will answer me to the last cry.
Cling to me as though you were frightened.
Even so, at one time a strange shadow ran through your eyes.
Now, now too, little one, you bring me honeysuckle,
and even your breasts smell of it.
While the sad wind goes slaughtering butterflies
I love you, and my happiness bites the plum of your mouth.
How you must have suffered getting accustomed to me,
my savage, solitary soul, my name that sends them all running.
So many times we have seen the morning star burn, kissing our eyes,
and over our heads the grey light unwind in turning fans.
My words rained over you, stroking you.
A long time I have loved the sunned mother-of-pearl of your body.
I go so far as to think that you own the universe.
I will bring you happy flowers from the mountains, bluebells,
dark hazels, and rustic baskets of kisses.
I want to do with you what spring does with the cherry trees.
written by Pablo Neruda
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by Anonymous at 2:26 AM 3 comments
Labels: नितिन । Nitin
Friday, September 14, 2007
हम तुझसे और सनम क्या चाहते हैं....
बस तेरे इश्क़ की इन्तहा माँगते हैं
जब भी तू गुम हो तन्हा किन्ही ख्यालों में
उन ख़यालो में अपनी ही बात चाहते हैं
जब भी फैला हुआ हो रात का आँचल
डूबते सितारो तक तेरे संग जागना चाहते हैं
दिल में मचल रहे हैं तेरे लिए कई अरमान
तेरे आगोश में उनको सच होते देखना चाहते हैं
कब तक यूँ ही मुझे तडपाता रहेगा तू यूं ही
आज हम तेरे वजूद में गुम होना चाहते हैं !!
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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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Posted by रंजू भाटिया at 10:58 PM 6 comments
Labels: रंजना । Ranjana