Friday, August 17, 2007

एक गज़ल

हमें क्या पड़ी थी , नींद की जो आरजू करते,
हमारे ख्वाब ,खुली नज़रों से थें गुफ्तगू करते ।

मसीहा इश्क का बेमौत शायद मर चुका होता,
जो गज़लों से मोहब्बत करना ना शुरू करते।

कोई कह दे उन्हें, वो शब भर बेसब्र ना रहें,
जग लेते हैं चकवा-चकई भी जुस्तजू करते।

निगाहे-नूर जिरह कर ले भी तो जान आ जाए,
जाने क्या मिले उनको , हमें बेआबरू करते ।

गर तबियत से मिले दिल तो रश्क भी करूँ,
आह! ना बने बीमार दिल को य़ूँ उदू करते।

'तन्हा' , नामुरादे-इश्क ऎसी बला है जान ले,
बस पल लगे नब्जों के पानी को लहू करते ।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

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LOVE IS GOD - प्रेम ईश्वर है।
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6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

त्न्हा जी, बहुत बेह्तरीन गजल है।बधाई।

A Silent Lover said...

निगहे-नूर जिरह कर ले भी तो जान आ जाए,
जाने क्या मिले उनको, हमें बेआबरू करते।


उनकी आवाज सुनने के लिए तडपता था दिल, उनको एक झलक देखने के लिए कुछ भी मन्जुर था। लेकीन वह नेही मिली। आप की एक गजल मे मुझे अपनी जिन्दगी दिख गयी। बधाई।

रंजू भाटिया said...

हमें क्या पड़ी थी , नींद की जो आरजू करते,
हमारे ख्वाब ,खुली नज़रों से थें गुफ्तगू करते ।


बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है तन्हा ज़ी

Nishikant Tiwari said...

beautiful gajal i liked it very much and thanks for advising me to join other aggregatorsNishikantWorld

Pramendra Pratap Singh said...

वाह तन्‍हा जी,

एक से बढ़कर एक लिखा है। पढ़कर आनन्‍द आ गया। बधाई

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... said...

वाह, अच्छी है..!!